Monday, 30 March 2020

आजके माहौलपर दो रचनाएँ

१. आज के माहौल पर एक ग़ज़ल पेशे ख़िदमत है.......


बेवजह घर से निकलने की ज़रूरत क्या है |
*मौत से आंख मिलाने की ज़रूरत क्या है |*

सबको मालूम है बाहर की हवा है क़ातिल |
*यूँ ही क़ातिल से उलझने की ज़रूरत क्या है ||*

ज़िन्दगी एक नियामत, इसे सम्हाल के रख |
*क़ब्रगाहों को सजाने की ज़रूरत क्या है ||*

दिल बहलने के लिए घर मे वजह हैँ काफ़ी |
*यूँ ही गलियों मे भटकने की ज़रूरत क्या है ||*

मुस्कुराकर, आंख झुकना भी अदब होता है |
*हाथ से हाथ मिलाने की ज़रूरत क्या है ||*

श्रेयांसकुमार जैन द्वारा प्रेषित

🙏🙏

२.  हरिवंश राय जी की प्रसिद्ध पंक्तियों की प्रेरणा से आज के परिपेक्ष्य में आप सभी से निवेदन,,,,

शत्रु ये अदृश्य है
विनाश इसका लक्ष्य है
कर न भूल, तू जरा भी ना फिसल
मत निकल, मत निकल, मत निकल

हिला रखा है विश्व को
रुला रखा है विश्व को
फूंक कर बढ़ा कदम, जरा संभल
मत निकल, मत निकल, मत निकल

उठा जो एक गलत कदम
कितनों का घुटेगा दम
तेरी जरा सी भूल से, देश जाएगा दहल
मत निकल, मत निकल, मत निकल

संतुलित व्यवहार कर
बन्द तू किवाड़ कर
घर में बैठ, इतना भी तू ना मचल
मत निकल, मत निकल, मत निकल


अनुरोध कि जन चेतना हेतु जब तक यह दावानल थम न जाए, पंक्तियों को अग्रसारित करें।।।।
🌹👏🌹
किसी ने अच्छा लिखा है —
विनोद कुमार द्वारा प्रेषित